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श्रीगणेश आराधना दूर करती है दुर्गुण और दुर्भावना

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पूर्वजन्म के संस्कार और कुसंगवश प्रत्येक मनुष्य के हृदय में कभी-न-कभी मात्सर्य (ईर्ष्या, डाह), मद, लोभ, काम, क्रोध, ममता और अहंता आदि दुर्गुण उत्पन्न होते हैं । आसुरी गुण के प्रतीक होने से इन्हें ‘असुर’ कहा गया है । गीता में भी इन्हें ‘आसुरी प्रवृत्तियां’ या ‘आसुरी सम्पदा’ कहा गया है ।

आसुरी प्रवृत्तियों के नाश का अमोघ उपाय है श्रीगणेश आराधना

गणेशजी परमात्मा के बुद्धिरूप हैं अर्थात् बुद्धि के देवता हैं। । गीता में दो प्रकार की बुद्धियों का वर्णन है—

१. व्यवसायात्मिका बुद्धि अर्थात् सुबुद्धि जो परमात्मा की ओर ले जाती है, और

२. अव्यवसायात्मिका बुद्धि या कुबुद्धि जो तर्क-वितर्क करके संसार के प्रपंच में फंसा देती है ।

ज्ञानरूप भगवान शिव और आद्या प्रकृति पार्वतीजी के सात्विक अंश से व्यवसायात्मिका बुद्धि या सद्बुद्धि श्रीगणेश की उत्पत्ति होती है और कुबुद्धि रूपी वाहन मूषक को वे अपने पांव तले दबाकर उस पर सवार रहते हैं ।

आठ प्रमुख अवतारों में किया आठ दुर्गुण रूपी असुरों का अंत

मुद्गलपुराण में श्रीगणेश के आठ प्रमुख अवतार बताए गए हैं । इन अवतारों में श्रीगणेश ने जिन असुरों का वध किया है उनके नामों को देखने से स्पष्ट होता है कि श्रीगणेश मनुष्य के अंत:करण में छिपे उसके वास्तविक शत्रुओं—काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद आदि का नाश करते हैं । भगवान श्रीगणेश की आराधना मनुष्य को सद्बुद्धि व विवेक प्रदान कर उसके अंदर छिपी राक्षसी वृत्तियों और दोषों को दूर कर उसमें सद्गुणों को उत्पन्न कर देती है ।

जानते हैं श्रीगणेश ने किस अवतार में किस दुर्गुण रूपी असुर का वध किया

१. ‘वक्रतुण्ड’ अवतार में श्रीगणेश ने सिंह पर सवार होकर मत्सरासुर का वध किया । (मत्सर, ईर्ष्या, डाह)

२. ‘एकदन्त’ अवतार में श्रीगणेश ने मूषक को वाहन बनाया और मदासुर का नाश किया । (मद)

३. ‘महोदर’ अवतार में उनका वाहन मूषक है । इस रूप में वे ज्ञानदाता होकर मोहासुर के नाशक हैं । (मोह)

४. ‘गजानन’ अवतार में उनका वाहन मूषक है । इस रूप में वे सांख्ययोगियों को सिद्धि देने वाले हैं व लोभासुर के संहारक हैं । (लोभ)

५. ‘लम्बोदर’ अवतार में इनका वाहन मूषक है और वे क्रोधासुर का विनाश करने वाले हैं । (क्रोध)

६. ‘विकट’ अवतार में उनका वाहन मयूर है और उन्होंने कामासुर का वध किया । (काम)

७. ‘विघ्नराज’ अवतार में उनका वाहन शेषनाग है और वे ममासुर के विनाशक हैं । (ममता)

८. ‘धूम्रवर्ण’ अवतार में श्रीगणेश का वाहन मूषक है और वे अभिमानासुर के नाशक हैं । (अभिमान, अहंता)

निराकार रूप से अंत:करण में विराजमान रहते हैं श्रीगणेश

भगवान श्रीगणेश सभी मनुष्यों के अंत:करण में विराजमान रहकर उसे अच्छे-बुरे का बोध कराते हैं । स्वयं असाधारण बुद्धि से सम्पन्न होने के कारण वे अपने भक्तों को सद्बुद्धि प्रदान करते हैं । हमारे अच्छे-बुरे व्यवहार हमारी बुद्धि के अधीन होते हैं । इसलिए श्रीगणेश की आराधना से मनुष्य के काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद, मात्सर्य और अहंकार आदि दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं ।

जैसा जिसका ज्ञान वैसा ही उसका व्यवहार होता है

स्कन्दपुराण के अनुसार बाल्यकाल में एक दिन श्रीगणेश ने एक बिल्ली को घायल कर दिया । जब वे अपनी माता के पास आए तो उन्होंने देखा कि माता के शरीर से रक्त बह रहा है । उन्होंने चोट लगने का कारण पूछा तो माता पार्वती ने कहा—‘जगत के सब प्राणियों में मेरा वास है । सब स्त्रियां मेरा ही अंश हैं । इस बिल्ली के ऊपर हुआ आघात मेरे पर ही पड़ा है ।’ तब से श्रीगणेश समस्त स्त्री जाति को अपनी माता का अंश मानकर सदा के लिए मातृभक्त हो गए ।

ऐसे सद्गुणों की खान भगवान श्रीगणेश की आराधना मनुष्य के काम को नष्ट कर उसकी वृत्तियों को ऊपर (सात्विकता और परमात्मा) की ओर मोड़ देती है—

देव विनायक ! ध्यान धरे मन, कान सुनें गुणगान तुम्हारे,
ले रसना रसनाम का सादर, लोचन रूप ललाम निहारें ।
रंग चढ़े विषयों का कभी नहीं, हो मन की सदा वृत्ति असंगा,
संगति साधु की पंगति की मिले, हो उसमें अनुरक्ति अभंगा ।
देख सदा सबमें प्रभु आपको, पाप का चित्त से दूर हो दंगा,
संसृति होवे विरक्ति प्रदायिनी, मानस में बहे भक्ति की गंगा ।। (‘राम’)

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