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भगवान का भोग ग्रहण करना

किसी गांव में एक दरिद्र ब्राह्मण बड़े प्रेम और श्रद्धा से अपने लड्डूगोपाल की सेवा करते थे । उनके पास धन नहीं था । घर में जो रूखा-सूखा भात का भोजन बनता, वही अपने ठाकुर जी को भोग लगा कर वे स्वयं ग्रहण...

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सती और पार्वती जी के अज्ञानता के अभिनय से हुआ श्रीरामचरितमानस का अवतरण

रावण द्वारा सीता जी का हरण कर लेने के बाद भगवान राम शोक का अभिनय करने लगे । वे पेड़-पत्तों और पशु-पक्षियों से सीता जी का पता पूछ रहे थे । उसी अवसर पर भगवान शंकर सती जी के साथ दण्डकारण्य में पधारे और...

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भगवान श्रीकृष्ण और चंद्रावली सखी

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ‘कलंक चतुर्थी’ भी कहते है; इस दिन चन्द्रदर्शन निषेध है । इस दिन चन्द्रमा के दर्शन से झूठा कलंक, चोरी और व्यभिचार का पाप लगता है ।  एक बार श्रीकृष्ण ने नारद जी से कहा–’हे...

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राधा तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन

राधा तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन । तीन लोक तारनतरन सो तेरे आधीन ।। संसार में श्रीराधा जैसी भाग्यवान कोई स्त्री नहीं है, जिनके पति तीनों लोकों के स्वामी श्रीकृष्ण सदैव उनके कन्धे पर गलबहियां डाले रहते...

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भगवान से विमुख होने पर किसी को सुख नहीं मिला

भगवान की प्रत्येक लीला मनुष्य पर कृपा करने के लिए ही होती हैं । ऐसा ही एक प्रसंग है श्रीराधा रानी की ‘कोप लीला’ । श्रीकृष्ण व राधारानी के श्रीअंग से प्रकट हुई गंगा उनका अंश व उन्हीं का स्वरूप है ।...

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भगवान विट्ठल और संत तुकाराम

‘भक्त के हृदय की करुण पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती, वह चाहे कितनी भी धीमी क्यों न हो, त्रिभुवन को भेदकर वह भगवान के कानों में प्रवेश कर ही जाती है और भगवान के हृदय को उसी क्षण द्रवित कर देती है ।’ ऐसा...

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अयोध्या का राजसिंहासन और रावण

अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट रघु ने ही ‘रघुकुल’ या ‘रघुवंश’ की नींव रखी थी । रघुकुल अपने सत्य, तप, मर्यादा, वचन पालन, चरित्र व शौर्य के लिए जाना जाता है । इसी वंश में भागीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ...

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ठाकुर बांकेबिहारी जी के स्वरूप की विशेषता

श्रीवृंदावन धाम में विराजित ठाकुर बांकेबिहारी, जिनकी हर बात है निराली; जैसा उनका नाम निराला; वैसा ही उनका रूप-स्वरूप भी अत्यंत निराला है ।  स्वामी हरिदास जी श्रीराधा की प्रिय ललिता सखी के अवतार माने...

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भगवान श्रीकृष्ण और कमल

भगवान श्रीकृष्ण और कमल का सम्बन्ध अटूट है । कुंती जी भगवान श्रीकृष्ण की बहुत सुंदर वंदना करते हुए कहती हैं— नम: पंकजनाभाय नम: पंकजमालिने । नम: पंकजनेत्राय नमस्ते पंकजाड़्घ्रये ।। (श्रीमद्भागवत)...

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नयनाभिराम भगवान श्रीबालकराम

त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम प्रगट हुए तो मां कौसल्या अपने शिशु का रूप निहारती रह गईं और गोस्वामी तुलसीदास जी कह उठे— भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी सुनि मन हारी अद्भुत रूप...

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