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हरियाली अमावस्या : पार्वतीजी की परीक्षा का दिन

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श्रावण का पूरा महीना ही भगवान शंकर व पार्वती से जुड़ा है । ऐसा ही श्रावण मास का एक पवित्र दिन है कृष्ण पक्ष की अमावस्या, जिसे ‘हरियाली अमावस्या’ कहते हैं । इस वर्ष यह पर्व शनिवार 11 अगस्त को मनाया जाएगा ।

क्यों मनाई जाती है हरियाली अमावस्या ?

इस पर्व को मनाने के पौराणिक व पर्यावरणीय—दो कारण हैं । पौराणिक कारण भगवान शंकर व पार्वतीजी के विवाह से जुड़ा है ।

पर्यावरणीय कारण—श्रावण मास में भूमि पर हरियाली ऐसे बिछ जाती है मानो किसी ने घास का गद्दा बिछा दिया हो । प्रकृति की सुन्दरता का जश्न मनाने के लिए बाग-बगीचों में पेड़ों पर झूला झूलने का व इस दिन वृक्षारोपण कर पर्यावरण की रक्षा करने का संदेश दिया गया है । वर्तमान समय में जबकि पर्यावरण के असंतुलन से चारों तरफ भीषण प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिल रही हैं, हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह ज्यादा-से-ज्यादा नए वृक्ष लगाकर इस पर्व को जोर-शोर से मनाए ।

‘व्रज’ प्रेम की भूमि है और उसकी भाषा मन को मिश्री की डली के समान मिठास प्रदान करने वाली है। ऐसी व्रजभूमि में जब सावन पदार्पण करता है तो आकाश में श्याम घटाएं घिरने लगती हैं, बादल झुक-झुक कर पृथ्वी को चूम लेने के लिए आतुर हो उठते हैं, बिजली चमकने लगती है, रिमझिम फुहारों व सीरी-सीरी बयार की शीतलता शरीर को आनन्दित करती है, यमुना अपने कूल-कछारों (तटों) को तोड़ी-फोड़ती तीव्र गति से बहती चली जाती है, लता-पताएं हरी-भरी और पुष्ट होकर वृक्षों से लिपटकर झूलने लगती हैं, मोर कूकने लगते हैं, पपीहा पीउ-पीउ कर अपनी प्रियतमा को बुलाते हैं, कोयल कुहू कुहू की मीठी तान छेड़ देती है, सरोवरों में हंस अठखेलियाँ करते हैं, दादुर, मोर, पपीहे की आवाजों से सारा ब्रज क्षेत्र आनन्दित हो जाता है, बादल भी जोर-जोर से गर्जना करते हैं। चम्पा, चमेली, मोगरा, मालती आदि पुष्पों की सुगन्ध व स्त्रियों के मधुरकंठों से मल्हार व कजरी का संगीत हवा में फैल जाता है। भूमि पर हरियाली ऐसे बिछ जाती है मानो किसी ने घास का गद्दा बिछा दिया हो। ऐसे मनभावन सावन में उमंगों की तरंगों में झूलता मन गांव-गली-बगीचों में पेड़ों पर पड़े झूलों पर चढ़ने को विवश हो जाता है।

हरियाली अमावस्या : पार्वतीजी के तप की परीक्षा का दिन

भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए पार्वतीजी बड़ी कठिन तपस्या कर रही थीं । उस तपस्या से समाधिस्थ शिव भी विचलित हो गए ।  ऐसा माना जाता है कि हरियाली अमावस्या के दिन शंकरजी ने पार्वतीजी के तप की परीक्षा लेने के लिए सप्त ऋषियों को उनके पास भेजा था । सप्त ऋषि पार्वतीजी के निश्चय की परीक्षा करने के लिए भगवान शंकर के बारे में मिथ्या बातें करने लगे—

‘शंकरजी लज्जा को छोड़कर नंग-धड़ंग कैलास पर्वत और श्मशान में भूत-प्रेतों के साथ रहते हैं, केशों को जटाजूट बना रखा है, कण्ठ में विष धारण किया हुआ है, मुण्डमाला पहनते हैं, अंगों में चिताभस्म व सर्प लपेटे रहते हैं, भांग-धतूरा आदि खाते हैं, उन्मत्त होकर ताण्डव नृत्य करते हैं, उनके कुल, खानदान माता-पिता, पितामह, गोत्र, जाति आदि का कोई पता नहीं है । वे खेती, व्यापार, अन्न, धन व गृह से शून्य हैं, तुम्हारा निर्वाह कैसे होगा ?  वे तो उदासीन और काम के शत्रु हैं । पहले सती से विवाह किया और कुछ दिन साथ रहकर उस बेचारी को त्याग दिया और खुद स्वतन्त्र होकर ध्यान में रम गए । ऐसे वर को पाकर तुम्हें क्या सुख मिलेगा ? वर के रूप, कुल, धन आदि जो कुछ गुण देखे जाते हैं, वे उस शंकर में तो एक भी नहीं है ?

लोक में प्रसिद्ध है—

कन्या वरयते रूपं माता वित्तं पिता श्रुतम् ।
बान्धवा: कुलमिच्छन्ति मिष्टान्न मितरे जना: ।।

अर्थात्—वर के अंदर कन्या रूप, माता धन, पिता विद्या और बंधु-बान्धव अच्छा कुल देखना चाहते हैं किन्तु आम आदमी मिठाइयों पर नजर रखता है । अब तुम ही देखो उस विरुपाक्ष (तीन नेत्रों वाले) में इनमें से कौन-सी बात है ?

अत: तुम उनको छोड़ दो और लक्ष्मीपति भगवान विष्णु को जो वैकुण्ठ में रहते हैं, अपना पति चुन लो ।’

पार्वतीजी ने हंसते हुए सप्त ऋषियों से कहा—

‘भगवान शंकर स्वयं अकिंचन हैं किन्तु संसार की समस्त सम्पत्तियां उन्हीं से उत्पन्न हुई हैं । वह भयंकर रूप हैं फिर भी कल्याणकारी कहे जाते हैं । महादेवजी तो विश्वेश्वर (विश्व के स्वामी) हैं, उन्हें खेती, व्यापार या नौकरी की क्या आवश्यकता है ? वे नंगे रहें, गजचर्म पहनें, या रेशमी वस्त्र से सुसज्जित हों, शरीर में सांप लपेटें या रत्न-आभूषण; वे त्रिशूल, खप्पर आदि लें या उनके शीश पर चन्द्रमा चमकता रहे, इससे उनके विश्व के स्वामी होने में कोई अंतर नहीं आता है । मैं आप लोगों की सीख नहीं सुनना चाहती हूँ, कृपया आप लोग अपने स्थान को पधारें । मैं शंकरजी के सिवाय किसी और को अपना पति नहीं बनाऊंगी ।’

प्रसन्न होकर सप्त ऋषियों ने दिया पार्वती को अटल सुहाग का वरदान

यह सुनकर सप्त ऋषि पार्वतीजी की जय-जयकार करने लगे और उन्हें अटल सुहाग का वरदान देकर शंकरजी के पास वापिस चले आए । वहां आकर उन्होंने पार्वतीजी की परीक्षा का पूरा विवरण सुनाया । यह सुनकर शंकरजी बहुत प्रसन्न हुए और सप्त ऋषियों को यह कहकर राजा हिमाचल के पास भेजा कि वे पार्वतीजी को घर लाकर विवाह की तैयारी करें । सप्त ऋषियों ने शंकरजी का समाचार राजा हिमाचल को सुनाया तो वे बहुत प्रसन्न हुए । राजा हिमाचल अपनी पत्नी व अन्य सुहागिन स्त्रियों के साथ सजधज कर नाचते गाते हुए पार्वतीजी के पास गए और उन्हें अपने घर ले आए । राजा हिमाचल के घर नित्य उत्सव होने लगे, खुशियां मनायी जाने लगीं व मिठाइयां बांटी जाने लगीं । तभी से हरियाली अमावस्या का त्यौहार मनाया जाने लगा ।

क्या है हरियाली अमावस्या पर्व का महत्व

  • हरियाली अमावस्या पर शिव-पार्वतीजी की पूजा से कुंवारी कन्याओं को श्रेष्ठ वर प्राप्त होता है  व विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य की वृद्धि होती है ।
  • इस दिन किसी नदी या जलाशय में स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितृगण प्रसन्न होते हैं ।
  • इस दिन वृक्ष लगाने का भी अत्यन्त महत्व है । जिनके संतान नहीं हैं, उनके लिए वृक्ष ही संतान का रूप हैं ।

महाभारत के अनुशासनपर्व में कहा गया है—‘वृक्ष लगाने वाला पुरुष अपने पूर्वजों और भविष्य में होने वाली संतानों का तथा पिता के कुल का भी उद्धार कर देता है। जो वृक्ष लगाता है, उसके लिए वे वृक्ष पुत्ररूप होते हैं । उन्हीं के कारण परलोक में उसे स्वर्ग व अक्षयलोक प्राप्त होते हैं ।

वृक्षों में है देवताओं का वास

इस दिन अपनी कामना के अनुसार वृक्ष अवश्य लगाने चाहिए । पीपल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसको लगाने से सद्गति मिलती है । संतान प्राप्ति के लिए पीपल, नीम, गुड़हल और अश्वगंधा लगाना चाहिए । लक्ष्मी प्राप्ति के लिए कदम्ब, आंवला, जामुन, व बेलपत्र, शोक दूर करने के लिए अशोक, ज्ञान व उत्तम पत्नी प्राप्त करने के लिए पाकड़, दीर्घायु के लिए बेलपत्र व रोगनाश के लिए शमी लगाना चाहिए ।

इस तरह लोगों को प्रकृति के करीब लाने व पर्यावरण की रक्षा के लिए यह पर्व मनाया जाता है ।

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